भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सबक / आनंद कुमार द्विवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गर्दन दुखने लगती है
आकाश को निहारते ... मगर
नहीं टूटते तारे अब
कोई और जतन बताओ
कि एक आखिरी मुराद माँगनी है मुझे
टूटने वाली चीजें भी
कुछ न कुछ दे ही जाती हैं
मसलन
एक सबक !