701 bytes added,
18:26, 18 जून 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=जरिबो पावक मांहि / आनंद कुमार द्विवेदी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
कितनी
रंगीन महफ़िल थी यार !
शायरी और शबाब का दौर..
मगर इसमें भी
'उस' साले ने
आलू, प्याज
रसोई गैस के बढ़े दाम...घुसेड़ दिए
उफ्फ्फ...
ये छोटे लोग न
कभी बड़ा
सोंच ही नही सकते
</poem>