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{{KKRachna
|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’
|अनुवादक=
|संग्रह=भोत अंधारो है / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
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<poem>
कुण कैवै
उडण सारु पग
भोत जरूरी है
देखो भंवै है नीं
बिना पग पांख
आखै जग में
पाणीं सोधती रेत
जठै मिलै
बठै ई बैठ जावै
बांथ घाल'र जळ रै
रेत ई पाळै
जळ सूं हेत
बिना पग-पांख!
</poem>
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