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{{KKRachna
|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’
|अनुवादक=
|संग्रह=भोत अंधारो है / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
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<poem>
बगत बदळतां
बगत नीं लागै
पण फेर भी
बदळे बगत
बगतसर ई!

कियां बदळै
आंख्या साम्हीं
थिर लागतो ओ बगत
बतावण रो
बगत ई नीं मिलै
किणीं बगतपाळ नै!
</poem>
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