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सुवाल / दुष्यन्त जोशी

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|संग्रह=अेकर आज्या रै चाँद / दुष्यन्त जोशी
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<poem>
मिनख नै
बात करण नै
टैम नीं है आज
मिनख कांईं चावै

मिनख
आपरै जमीर नै बेच'र
कांईं बणनौ चावै

म्हारै मन में
घणांईं उठै सुवाल

पण
बां रै
पड़ूत्तर सारू
सोधतौ रैवूं
खुद नै
भीतर ई भीतर।
</poem>
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