भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुवाल / दुष्यन्त जोशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मिनख नै
बात करण नै
टैम नीं है आज
मिनख कांईं चावै

मिनख
आपरै जमीर नै बेच'र
कांईं बणनौ चावै

म्हारै मन में
घणांईं उठै सुवाल

पण
बां रै
पड़ूत्तर सारू
सोधतौ रैवूं
खुद नै
भीतर ई भीतर।