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रूप बदलकर एक टाँग पर खड़ा मगर है / डी. एम. मिश्र
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09:48, 8 जुलाई 2017
अंधे राजा के सब पहरेदार सो गये,
प्रजा सजग है
धोख
धोखे
में दरबार मगर है।
गाँव
छज्ञेड़कर
छोड़कर
अपना मैं यह कहाँ आ गया,
पुठपाथों पर जगह नहीं सम्पन्न शहर है।
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