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11:13, 8 जुलाई 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ॠतुप्रिया
|अनुवादक=
|संग्रह=सपनां संजोवती हीरां / ॠतुप्रिया
}}
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<poem>
बीज आवै
आपरै रूप में
धरा री
देह सूं बारै
तद ई
पत्थरां री
पक्की भींतां बिचाळै
देखां
हरियल रूंख।
धरा अंगेजै
सींचै
दिखावै आपरी माया
अर सिखावै
जीणै रौ ढंग।
</poem>
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