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12:45, 9 जुलाई 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा
|अनुवादक=
|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
}}
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<poem>
बै बातां में मगन है
म्हैं कविता सारू जूझूं।
बां बातां ई बातां में कथ दी
सांतरी कविता।
म्हारै हाथ
कविता तो दूर
बात ई कोनी आई!
</poem>
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