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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=आईना-दर-आईना / डी. एम. मिश्र
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<poem>
प्यार में क्या-क्या समर्पण हो गया।
आपके आधीन कण-कण हो गया।

प्यार ने मेरी बदल दी ज़िंदगी,
प्राण का सुख-चैन अर्पण हो गया।

जब दिलों में दूरियाँ बढ़ने लगीं,
भाग्य के प्रतिकूल क्षण-क्षण हो गया।

जब से बदली आपने अपनी नज़र,
कामनाओं में विकर्षण हो गया।

आपके सजने सँवरने के लिए,
वेदना का नीर दर्पण हो गया।

</poem>
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