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प्यार में क्या-क्या समर्पण हो गया / डी. एम. मिश्र

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प्यार में क्या-क्या समर्पण हो गया
आपके आधीन कण-कण हो गया।

प्यार ने मेरी बदल दी ज़िंदगी
प्राण का सुख-चैन अर्पण हो गया।

जब दिलों में दूरियाँ बढ़ने लगीं
भाग्य के प्रतिकूल क्षण-क्षण हो गया।

जब से बदली आपने अपनी नज़र
कामनाओं में विकर्षण हो गया।

आपके सजने सँवरने के लिए
वेदना का नीर दर्पण हो गया।