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16:10, 20 अगस्त 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रमोद सोनवानी 'पुष्प'
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<poem>
रुक म डारा-पाना हर डोलय।
कोइली-मइना मगन मन बोलय।
फर गे चार, फर गे केंदूँ,
सज गे रुक-राई।
दू फसली लगे हावय,
देख तो पाई-पाई।
महुआ फूल के रस हर,
मता दीस हे भूईयाँ ला
देख तो परसा फुलवा हर,
सजा दीस हे भूईयाँ ला।
</poem>
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