डारा-पाना डोलय / प्रमोद सोनवानी 'पुष्प'

रुक म डारा-पाना हर डोलय।
कोइली-मइना मगन मन बोलय।

फर गे चार, फर गे केंदूँ,
सज गे रुक-राई।
दू फसली लगे हावय,
देख तो पाई-पाई।

महुआ फूल के रस हर,
मता दीस हे भूईयाँ ला
देख तो परसा फुलवा हर,
सजा दीस हे भूईयाँ ला।

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