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16:29, 20 अगस्त 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रमोद सोनवानी 'पुष्प'
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<poem>
धरती हा पाटी पारे हे,
देख तो भईया।
बेनीं गथाथे बड़े बिहिनिया,
तब तो दिखथे बढियाँ।
केवती केवरा के सुघर फुँदरा
पानी गिराथे कारी बदरा।
बाली धान के लहलहाथे,
पूजा करथें तिरिया।
धरती हमर जीवन दाता,
सिंगारो रे धरती माता।
खेती करईया मइनखें मन अब तो,
धान के खा लो किरिया।
</poem>
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