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गाँव छोड़कर अपना मैं यह कहाँ आ गया
पुठपाथों फुटपाथों पर जगह नहीं सम्पन्न शहर है।
मँहगाई की मार झेलता आम आदमी
बड़े लोग तो खुश हैं उन पर कहाँ असर है।
</poem>
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