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इज़्ज़तपुरम्-25 / डी. एम. मिश्र

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<poem>
पैसों के
जोर पर
अनाप-शनाप
बढ़ती
पटरियों के
इस युग में
सोचना फिजूल है
कि गाड़ी पटरी पर आयेगी
और लोग अपना बोझ
उठायेंगे खुद

सोचिये-
जरूरी है
कुली लोग हों
या लोग हों कुली
पर, इन्सानी बुद्धि का
दावा यही है
कि बुद्धि का हथियार
वो चला लेता
कैसे है ?

अपना बोझ डालकर
दूसरे के कंधे पर
आगे-आगे चलता है
झुलाता हुआ खाली हाथ
</poem>
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