Changes

इज़्ज़तपुरम्-60 / डी. एम. मिश्र

819 bytes added, 11:48, 18 सितम्बर 2017
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डी. एम. मिश्र |संग्रह=इज़्ज़तपुरम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=इज़्ज़तपुरम् / डी. एम. मिश्र
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
कल
लगती सूरज की
खुलती आँख अच्छी थी
और आज डूबती

दुश्मन
जा मरता नहीं

पाउउर की परत
हल्की हो जाती
बार-बार

बार-बार
जूड़े की पिन
खिसकी जाती

और बार-बार
कील-काँटे से दुरूस्त
लोहे की काया
अँधेरे की रेलगाड़ी
यात्री तलाशती
ठंडी सड़क पर
सीटी बजाती
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits