Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=टोमास ट्रान्सटोमर |संग्रह= }} <Poem> सफ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=टोमास ट्रान्सटोमर
|संग्रह=
}}
<Poem>
सफ़ेद सूरज पिघल रहा है धुंध में
टपक रही है रोशनी रास्ता बनाते हुए नीचे

जमीन में दबी मेरी आँखों की तरफ
जो शहर के नीचे से देख रही हैं ऊपर

नीचे से देखना शहर को : सड़कों और इमारतों की नींव को
जैसे युद्ध के दौरान किसी शहर का हवाई दृश्य

जैसे उल्टी तरफ से -- एक खुफिया तस्वीर
फीके रंगों की खामोश वर्गाकार आकृतियाँ

यहाँ लिए जाते हैं फैसले
और कोई फर्क नहीं कर पाता ज़िंदा और मुर्दा हड्डियों में

तेज हो जाती है सूरज की रोशनी और
भर जाती है हवाईजहाजों के काकपिट
और मटर की फलियों के भीतर.

'''(अनुवाद : मनोज पटेल)'''
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits