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09:15, 23 अक्टूबर 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुरेश चंद्रा
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|संग्रह=
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<poem>
एक धुली हुई सुबह पर, हम ढ़ेरों शब्द रख देते हैं
और दिन मटमैला होते हुए, रात का बदन काला कर जाता है
नज़दीकियाँ, दूरियों का बहाना भर हैं
और शब्द, अकारण ही कारण.
</poem>