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05:54, 3 दिसम्बर 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=इंदुशेखर तत्पुरुष
|अनुवादक=
|संग्रह=पीठ पर आँख / इंदुशेखर तत्पुरुष
}}
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<poem>
जिस तरह सरपट
दौड़ती गाड़ी के ऐन सामने
अकस्मात् आये आदमी को देखकर
तत्काल भींच देता ब्रेक अचूक
चौकन्ना चालक
जिस तरह गहरे पानी में
डूबता आदमी झौंक देता
सारी की सारी ताकत
संपूर्ण छटपटाहट के साथ
बाहर निकल आने को
अब चाहिए उतना ही
चौकन्नापन, ताकत और छटपटाहट
सैंकड़ों बरस पहले कहे गये बाबा रहीम के
मोती-मानस-चून की खातिर
कि सब-कुछ सूना हो जाने से
बचाने के लिए।
कि अब किसी भी क्षण
मेरे संजीवनी हाथों से
छूटने वाली है वह विराट दिव्य चट्टान
जिससे फिसलते-फिसलते
पकड़ मेरी आठों अंगुलियों के
पहले पारों पर आ टिकी है
और मेरी उजली पगथलियों के नीचे
मुझको लीलने को मुंह खोले तैयार
अजगर सरीखी
तुम्हारी सभ्यता का मैला ढोती
नहरों का जाल बिछा है।
</poem>
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