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फिसलते पानी की पुकार / इंदुशेखर तत्पुरुष
Kavita Kosh से
जिस तरह सरपट
दौड़ती गाड़ी के ऐन सामने
अकस्मात् आये आदमी को देखकर
तत्काल भींच देता ब्रेक अचूक
चौकन्ना चालक
जिस तरह गहरे पानी में
डूबता आदमी झौंक देता
सारी की सारी ताकत
संपूर्ण छटपटाहट के साथ
बाहर निकल आने को
अब चाहिए उतना ही
चौकन्नापन, ताकत और छटपटाहट
सैंकड़ों बरस पहले कहे गये बाबा रहीम के
मोती-मानस-चून की खातिर
कि सब-कुछ सूना हो जाने से
बचाने के लिए।
कि अब किसी भी क्षण
मेरे संजीवनी हाथों से
छूटने वाली है वह विराट दिव्य चट्टान
जिससे फिसलते-फिसलते
पकड़ मेरी आठों अंगुलियों के
पहले पारों पर आ टिकी है
और मेरी उजली पगथलियों के नीचे
मुझको लीलने को मुंह खोले तैयार
अजगर सरीखी
तुम्हारी सभ्यता का मैला ढोती
नहरों का जाल बिछा है।