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07:20, 23 दिसम्बर 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=दीपक शर्मा 'दीप'
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|संग्रह=
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<poem>
छज्जे पर है बैठा चाँद
रोटी जैसा लगता चाँद
ख़्वाबों में थे मंज़र ख़ूब
मैंने ओढ़ रखा था चाँद
बस्ती में कोलाहल क्यों
आया है क्या मेरा चादँ?
वो बोला रे पगली जान!
मैं बोली, हाँ पगला चाँद
बहना बोली भइया चाँद
भइया बोला बहना चाँद
मिलता है कचरे में क्यों
करते हो जब पैदा चादँ?
शब के काले गेसू और,
और चमेली गुच्छा चाँद
आजा-आजा-आजा-आ
अह्हा मेरा बच्चा 'चाँद'
हीरे बिखरे मीलों-मील
गुस्से में जो पटका चाँद
किस्मत वाला होगा ख़ूब
यारो!जिसका होगा चाँद
ख़ूब नचाया उसने 'दीप'
जैसे गोया सिक्का चाँद"
</poem>