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14:52, 23 दिसम्बर 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=दीपक शर्मा 'दीप'
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|संग्रह=
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<poem>
क्या करते गर मर ना जाते
बोलो! कब तक घर ना जाते
अपनों से ही मिल जाता जो
प्यार अगर, बाहर ना जाते
अपना दिल जो बस में होता
गोया हम तुम तर ना जाते
प्यास बुझा गर देता दरिया
भईया! हम सागर ना जाते
ज़ज़्बा ही तो काम न आया
वरना, वे कुछ कर ना जाते?
कुछ तो है ही दाल में काला
नाहक..आप उधर ना जाते
यहाँ-वहाँ हर ओर जहन्नुम
कब तक पैर किधर ना जाते
</poem>