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06:38, 11 जनवरी 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सुनीता काम्बोज
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|संग्रह=
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<poem>
उनके मन में है क्या समझते हैं
हम भी अच्छा बुरा समझते हैं
दर्द को और भी बढ़ा देगी
आप जिसको दवा समझते हैं
क़त्ल करना अजीब है उसका
सब उसे हादसा समझते हैं
वो हक़ीक़त से आशना ही नहीं
उनको जो बेवफ़ा समझते हैं
अब '''सुनीता''' क़लम की पूजा को
सिर्फ़ हम साधना समझते हैं
</poem>