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13:00, 8 अप्रैल 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=[[मोनिका गौड़]]
|अनुवादक=
|संग्रह=अंधारै री उधारी अर रीसाणो चांद / मोनिका गौड़
}}
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<poem>
बदळतै बगत रै बायरै साथै
खिर रैयी है रिस्तां री मिठास
नी रैया मिनख, नीं मिनखीचारो
ना हिवड़ै में हिंवळास
बाजार रै चौरायै ऊभी संवेदना
बणा दियो हर मानखै नैं अवसर
हर रिस्तै नैं पगोथिया
जका चावै फगत नाम, दाम अर चाम
किचरीजो भलां ई हेत
मासूमियत
भलमानसी
जींवता रैणा चावै अवसर
तो भाज बावळा
ढूंढ दमदार पगोथिया
पण याद राखजै
ऊंची चढती पेड़्यां
हेटै भी आया करै...।
</poem>