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02:48, 14 अप्रैल 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मानोशी
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<poem>
मौसमों के रंग बिखरे
रंग फागुन है पलाशी
शीत की है सांध्य बेला
हो रही उसकी विदाई,
रंग की बारात ले कर
अब बसंती सुबह आई,
हाथ में ले तक्षणी ज्यों
एक छवि सुंदर तराशी|
हो रहा मदहोश चहुँ दिक्
गंध महुआ के बिखेरे,
घुल रही रंगों से कटुता
कट रहे हिय के अंधेरे,
फिर मनी होली जहाँ में
फिर हुआ है जग प्रकाशी|
</poem>