Changes

लावा / कल्पना सिंह-चिटनिस

1,142 bytes added, 04:06, 29 अप्रैल 2018
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कल्पना सिंह-चिटनिस |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कल्पना सिंह-चिटनिस
|अनुवादक=
|संग्रह=तफ़्तीश जारी है / कल्पना सिंह-चिटनिस
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>

वे कैसे हो सकते हैं खामोश
जो लाये थे शब्द डूबकर
शताब्दियों के प्रवाह से

एक आग पी थी
और उगाये थे शब्द
हथेलियों पर

आवाज़ जिनकी
उधार नहीं
वे क्यूँ हैं खामोश?

या लहकती हैं आज भी कहीं
अस्थियां उनकी देह में
और सुर्ख़ है लहू?

फिर क्यों हैं वो
बर्फ की तरह सर्द
सफ़ेद?

जो अपनी ख़ामोशी से हमें करते हैं हैरान,
देखते हैं वे भी
सड़कों पर फैलता लावा।

</poem>
Mover, Reupload, Uploader
10,371
edits