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दिन कटे हैं धूप चुनते / अवनीश त्रिपाठी
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18:33, 6 मई 2018
<poem>
रात कोरी कल्पना में
दिन कटे हैं धूप
चुनते।
चुनते
प्यास लेकर
भक्ति बैठी रो रही अब
तक धुंए का मन्त्र सुनते
।
छाँव के भी
देह की निष्ठा अभागिन
जल उठी संकोच बुनते
।
सौंपकर
दुःख हुए संतृप्त लेकिन
सुख रहे हर रोज घुनते
।
</poem>
Rahul Shivay
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