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08:39, 11 मई 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मानसिंह शेखावत 'मऊ'
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<poem>
पग रै नीचै लाय लाग'री, डूंगर बळती दीखै है !
काकाजी री सारी कुबदां, चढ़ चोबारै चीखै है !!
मा को जायो बैर काढ़रयो, संघी मिनख सरीखै है !
बैठ्यो जड़ काटै भाई की, लगी चोट पै रींकै है !!
बेरुजगार डोलरया बेटा, जण-जण आगै झींकै है !
दारू पीकै दरबेड़ा कर, आकासां मैं फीकै है !!
घर का पूत कुँवारा डोलै, पाड़ोसी नैं टींकै है !
रामरुसग्यो राज नाटग्यो, कुण नैं आज उडीकै है !!
अड़वा ऊबा खेत-खेत मैं, ठाकर क्यूँ ना सीखै है !
पग रै नीचै लाय लाग'री, डूंगर बळती दीखै है !!
</poem>