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18:23, 21 मई 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राजेराम भारद्वाज
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(9)
सांग:– गोपीचंद-भरथरी & अनुक्रमांक – 25
गुरू की बाणी आई, याद सब चेल्या नै,
मन मैं करया विचार ।। टेक ।।
उस नगरी मैं जाके अलख जगाईयों, जड़ै धन बिन हो दातार,
हलवा पूरी खीर मिठाई, ना चाहिए अन्न आहार।।
कुएं बावडी ताल सरोवर, ना बहती हो कोए धार,
उस तीर्थ का पाणी लाइयों, ना भरती हो पणिहार।।
पांखा बिन पक्षी उड़ते, मर-मर जीवै संसार,
सूर्य बिना रोशनी हो, बिन बादल पड़ै फुंहार।।
राजेराम रटै दुर्गे नै, होज्या बेड़ा पार,
चार यादकर गंधर्फ नीति, फेर बणीये कलाकार।।
</poem>