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|रचनाकार=मोहम्मद सद्दीक
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|संग्रह=जूझती जूण / मोहम्मद सद्दीक
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<poem>
गुवाड़ रो जायो
कींनै बाप कै‘र पुकारसी
आंख्यां खोलै थड़ी करै
जियां कियां चालणो चावै
गुवाड़ स्यूं घर
घर स्यूं सागी घर तांईं
पूगणै रा मारग पागड़ी रै पेचां दांईं
घणां घुमावदार है।
मारग में बिड़द बांचणियां
जच्चै जठै लाधै
तुरता-फुरत
याद दिलावै
आपरी, आपरै बाप री
आपरै खानदान री।
पांवड़ै दो पांवड़ै रो पैंडो
कोसां लाम्बो कर नाखै।
सांच नै झूठ में
बदलतां कितरीक ताळ लागै
जलेबी भांत गळ्यां रै
गूंगै झालां नै
कुणसी समझै
घिरै फिरै लाधै
सागी ठौड़।
</poem>
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