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दोहा सप्तक-18 / रंजना वर्मा
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15:31, 13 जून 2018
अम्बर टूटा काँप कर, थर थर डिगा दिगन्त।
पल भर में मानो हुआ, सुघर सृष्टि का अंत।।
मौसम की अटखेलियाँ, बिखरे कितने रंग।
Rahul Shivay
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