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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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<poem>
हमारे दिल में रह कर थक न जाएं
तुम्हारे ग़म यहाँ पर थक न जाएं

हमें तो ज़ख़्म खाने की आदत
चला के लोग पत्थर थक न जाएं

हमारी दास्तां पर रोते रोते
तुम्हारे दीदा ए तर थक न जाएं

निकाला है दिलों ने काम इतना
कहीं दस्ते रफ़ूगर थक न जाएं

चरागों में ग़ज़ब का हौसला है
हवा ! तेरे ये लश्कर थक न जाएं
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