{{KKGlobal}}{{KKLokRachna|रचनाकार=अज्ञात}}{{KKLokGeetBhaashaSoochi|भाषा=खड़ी बोली}}
''' सावन –गीत <br>'''‘’आम्बों "आम्बों की ठाण्डळी छाँव<br>
आम्बों तळै क्यूँ खड़ी ? <br>
क्या तेरे पिया परदेश<br>
क्या घर सास बुरी’’बुरी"<br>
“ "चल-चल मूरख गँवार<br>
तुझै मेरी क्या पड़ी <br>
कोरी –सी कुल्हिया मँगाई दहिया जमावती<br>
आया है कालड़ा काग ,दही तो मेरी चाख गया , <br>
उड़-उड़ काले काग तेरी चोंच बुरी।” आम्बो…<br>
“नाक में सोन्ने की नथ ,गूँठे में तेरे आरसी<br>
है कोई चतुर सुजान जो पूछै तेरी पारसी।” आम्बो…<br>
“ सासू का जाया है पूत ,नणदिया का बीर<br>
वो ही है चतुर सुजान, पूछैगा मेरी पारसी । आम्बो…<br>
“आया है जो सावण मास थाम गड़ावती <br>
जो घर होते म्हारे श्याम , मैं झूला झूलती । आम्बो…<br><br><br>
[ यह बारहमासा गीत है ।क्रमशहै। क्रमश: सभी महीनों एवं उनकी विशेषताओं का वर्णन किया जाता है ।है। ] <br>