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आम्बो तलै क्यूँ खड़ी (सावन गीत) / खड़ी बोली
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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"आम्बों की ठाण्डळी छाँव
आम्बों तळै क्यूँ खड़ी ?
क्या तेरे पिया परदेश
क्या घर सास बुरी"
"चल-चल मूरख गँवार
तुझै मेरी क्या पड़ी
ना मेरे ओइया परदेश
ना घर सास बुरी।” आम्बो…
कोरी –सी कुल्हिया मँगाई दहिया जमावती
आया है कालड़ा काग, दही तो मेरी चाख गया ,
उड़-उड़ काले काग तेरी चोंच बुरी।” आम्बो…
“नाक में सोन्ने की नथ, गूँठे में तेरे आरसी
है कोई चतुर सुजान जो पूछै तेरी पारसी।” आम्बो…
“ सासू का जाया है पूत, नणदिया का बीर
वो ही है चतुर सुजान, पूछैगा मेरी पारसी । आम्बो…
“आया है जो सावण मास थाम गड़ावती
जो घर होते म्हारे श्याम, मैं झूला झूलती । आम्बो…
[ यह बारहमासा गीत है। क्रमश: सभी महीनों एवं उनकी विशेषताओं का वर्णन किया जाता है। ]