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08:07, 26 जुलाई 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=[[लक्ष्मीनारायण रंगा]]
|अनुवादक=
|संग्रह=आंख ई समझै / लक्ष्मीनारायण रंगा
}}
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<poem>
समझै आंख
वामन में विराट
सिंधु में बिंदु
’
नाद उपजी
नाद मांय समासी
समची सृष्टि
’
बिकै कानून
चढै नीलामी न्याय
लोकतंत्र है
</poem>
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