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07:43, 27 जुलाई 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=[[लक्ष्मीनारायण रंगा]]
|अनुवादक=
|संग्रह=आंख ई समझै / लक्ष्मीनारायण रंगा
}}
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<poem>
पांच सकै है
अकास री ऊंचाई
जै हुवै हुंस
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ताकड़ियां तो
सदा छळती रैी
तनां-मनां नैं
{{KKBR}}
विरासत तो
कोरो धन नीं हुवै,
संस्कार हुवै।
</poem>
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