भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाइकु111 / लक्ष्मीनारायण रंगा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पांच सकै है
अकास री ऊंचाई
जै हुवै हुंस


ताकड़ियां तो
सदा छळती रैी
तनां-मनां नैं


विरासत तो
कोरो धन नीं हुवै,
संस्कार हुवै।