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हाइकु111 / लक्ष्मीनारायण रंगा
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पांच सकै है
अकास री ऊंचाई
जै हुवै हुंस
ताकड़ियां तो
सदा छळती रैी
तनां-मनां नैं
विरासत तो
कोरो धन नीं हुवै,
संस्कार हुवै।