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12:05, 12 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निशाकर
|अनुवादक=
|संग्रह=ककबा करैए प्रेम / निशाकर
}}
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<poem>
प्रेम
आमद-खरच
विचारि कऽ नहि होइत अछि
ओ
बतास
आगि
आ पानि जकाँ
सहजे भऽ जाइत अछि।
प्रेम करे
कोनो समय नहि होइत अछि
ओ
कोनो समयमे
कोनो ठाम
ककरो सँ भऽ जाइत अछि।
प्रेम धनुषसँ छूटल बाण जकाँ लागि जाइत अछि
आ लोकक मोनमे
उछाहक समुद्र जागि जाइत अछि।
</poem>