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|संग्रह=ककबा करैए प्रेम / निशाकर
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<poem>



प्रेम
आमद-खरच
विचारि कऽ नहि होइत अछि

बतास
आगि
आ पानि जकाँ
सहजे भऽ जाइत अछि।

प्रेम करे
कोनो समय नहि होइत अछि

कोनो समयमे
कोनो ठाम
ककरो सँ भऽ जाइत अछि।

प्रेम धनुषसँ छूटल बाण जकाँ लागि जाइत अछि
आ लोकक मोनमे
उछाहक समुद्र जागि जाइत अछि।

</poem>
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