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14:19, 26 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
|अनुवादक=
|संग्रह=तुमने कहा था / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
शीशाए दिल को हमारे तोड़ कर
चल दिये वो हमको रोता छोड़ कर
कुल जहां तुमको कहेगा बेवफ़ा
तोड़ते हो क्यों ये रिश्ता जोड़ कर
क्या ख़ता मुझसे हुई है जाने-मन
जा रहे हो किसलिए मुंह मोड़ कर
आबले हैं गर मेरे दिल में बहुत
क्यों मैं भागूं फूल कांटे छोड़ कर
किस जगह मिल पायेगा दिल को सुकूं
किस जगह जाऊं मैं शिमला छोड़ कर।
</poem>