भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शीशाए दिल को हमारे तोड़ कर / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
Kavita Kosh से
शीशाए दिल को हमारे तोड़ कर
चल दिये वो हमको रोता छोड़ कर
कुल जहां तुमको कहेगा बेवफ़ा
तोड़ते हो क्यों ये रिश्ता जोड़ कर
क्या ख़ता मुझसे हुई है जाने-मन
जा रहे हो किसलिए मुंह मोड़ कर
आबले हैं गर मेरे दिल में बहुत
क्यों मैं भागूं फूल कांटे छोड़ कर
किस जगह मिल पायेगा दिल को सुकूं
किस जगह जाऊं मैं शिमला छोड़ कर।