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04:19, 30 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अजय अज्ञात
|अनुवादक=
|संग्रह=जज़्बात / अजय अज्ञात
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<poem>
कहाँ कोई हिन्दू मुसल्मां बुरा है
जो नफ़रत सिखाये वो इंसां बुरा है
सियासत में हरगिज़ न इन को घसीटो
न गीता बुरी है, न कुरआं ़ बुरा है
बिना कुछ किये ही मिले कामयाबी
ये हसरत बुरी है ये अरमां बुरा है
हुनर सीख लो मुस्कुराने का ग़म में
हमेशा ही रहना परेशां बुरा है
सफ़र जिं़दगानी का छोटा है ‘अज्ञात’
जुटाना युगों तक का सामां बुरा है
</poem>