भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कहाँ कोई हिन्दू मुसल्मां बुरा है / अजय अज्ञात
Kavita Kosh से
कहाँ कोई हिन्दू मुसल्मां बुरा है
जो नफ़रत सिखाये वो इंसां बुरा है
सियासत में हरगिज़ न इन को घसीटो
न गीता बुरी है, न कुरआं ़ बुरा है
बिना कुछ किये ही मिले कामयाबी
ये हसरत बुरी है ये अरमां बुरा है
हुनर सीख लो मुस्कुराने का ग़म में
हमेशा ही रहना परेशां बुरा है
सफ़र जिं़दगानी का छोटा है ‘अज्ञात’
जुटाना युगों तक का सामां बुरा है