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15:00, 18 दिसम्बर 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राम नाथ बेख़बर
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|संग्रह=
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<poem>
ज़ख्म जो दूसरों के भरता है
शख़्स मरकर नहीं वो मरता है।
रंग लाती है शायरी अपनी
दर्द जब रूह तक उतरता है।
आती हैं मुश्किलें तो आ जाएं
हौंसला अब नहीं बिखरता है।
आँखें हो बन्द या खुली मेरी
अक्स तेरा सदा उभरता है।
चलते जाना तू अपनी मस्ती में
वक़्त बिलकुल नहीं ठहरता है।
</poem>
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