भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़ख्म जो दूसरों के भरता है / राम नाथ बेख़बर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज़ख्म जो दूसरों के भरता है
शख़्स मरकर नहीं वो मरता है।

रंग लाती है शायरी अपनी
दर्द जब रूह तक उतरता है।

आती हैं मुश्किलें तो आ जाएं
हौंसला अब नहीं बिखरता है।

आँखें हो बन्द या खुली मेरी
अक्स तेरा सदा उभरता है।

चलते जाना तू अपनी मस्ती में
वक़्त बिलकुल नहीं ठहरता है।