1,506 bytes added,
17:28, 19 जनवरी 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कपिल भारद्वाज
|अनुवादक=
|संग्रह=सन्दीप कौशिक
}}
{{KKCatHaryanaviRachna}}
<poem>
हजारों मुखोटों के पीछे से,
खनखनाती हंसी हंसता है एक विकृत दिमाग,
जिसकी भयावहता ने लील लिया है,
जल-जंगल पर्वत-नदियों और खलिहानों के नूर को,
और टांक लिया है अपने लखटकिया सूटों में बटन की तरह !
सत्ता के अहंकार से दीपदीपाता उसका मुख,
बेशक नकली प्रसाधनों से उजला रहता है लेकिन,
उसके भीतर बैठे अंधेरे को स्पष्ट देखा जा सकता है,
उसके माथे की त्यौरियो में !
कोई समझाए उसे कि,
चमचमाते सूरज की रोशनी को लाठियों से नहीं पीटा जा सकता,
कोई बताए उसे कि
खील-बताशों सी मीठी हंसी को कप्तानों के बुंटो तले नहीं रौंदा जा सकता !
</poem>