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टेसू के फूलों के
भारी हैं पाँव
रूप दियाप्रभु ने परगंध नहीं दीपत्ते भीछीन लिए
धूप ने सभी
सूरज अब मर्जी मरज़ी से
खेल रहा दाँव
मंदिर मेंजगह नहीं
मस्जिद अनजान
घर -बाहरग्राम -नगरकरते मिलता अपमान
कहीं नहीं मिली छुपने को
पत्ती भर छाँव
रँग रंग अपना
देने को
पिसते हैं रोज
जंगल की आग कहें
सभ्य शहर -गाँव
</poem>
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