711 bytes added,
20:59, 23 जनवरी 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मधु शर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
वह चाहती है
हटा देना पाट खिड़कियों के
मन के झरोखों के पार
फेंक दिए उसने सब आवरण
संकोच और अवकाश
देह से अवसान लिए
वह सट कर खड़ी है झरोखे से
अपने सब कुछ के होने से मुक्त
वह बस आने को है बाहर
इस देह से; यह काँच भी हटाती हुई।
</poem>