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05:26, 25 जनवरी 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती'
|संग्रह=प्यार का पहला ख़त / हस्तीमल 'हस्ती'
}}
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<poem>
आते-जाते डर लगता है
ये राजा का दर लगता है
धरती के इन भगवानों से
ईश्वर को भी डर लगता है
अपनी चौखट को ऊँचा कर
हम बौनों का सर लगता है
दर्द पराये का छलके तो
आँसू भी गौहर लगता है
तेरा आना जब होता है
मेरा घर तब घर लगता है
</poem>