भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आते-जाते डर लगता है / हस्तीमल 'हस्ती'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आते-जाते डर लगता है
ये राजा का दर लगता है

धरती के इन भगवानों से
ईश्वर को भी डर लगता है

अपनी चौखट को ऊँचा कर
हम बौनों का सर लगता है

दर्द पराये का छलके तो
आँसू भी गौहर लगता है

तेरा आना जब होता है
मेरा घर तब घर लगता है